UP Board class 11 Physics Chapter 12. ऊष्मागतिकी Hindi Medium Notes - PDF
अध्याय 12: ऊष्मागतिकी (Thermodynamics)
ऊष्मागतिकी भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जो ऊष्मा और अन्य प्रकार की ऊर्जाओं के बीच संबंधों तथा इन ऊर्जाओं के पदार्थ की अवस्था पर प्रभाव का अध्ययन करती है।
मुख्य अवधारणाएँ एवं शब्दावली
- तंत्र (System): ब्रह्मांड का वह भाग जिसे हम अध्ययन के लिए चुनते हैं।
- परिवेश (Surroundings): तंत्र के बाहर का वह भाग जो तंत्र को प्रभावित करता है या तंत्र से प्रभावित होता है।
- दीवार (Wall): तंत्र और परिवेश को अलग करने वाली सीमा। यह तीन प्रकार की हो सकती है:
- सुगम्य दीवार (अनुतापी): ऊष्मा के आदान-प्रदान की अनुमति देती है।
- असुगम्य दीवार (रुद्धोष्म): ऊष्मा के आदान-प्रदान की अनुमति नहीं देती।
- स्थिर दीवार: कार्य (जैसे विस्तार) के लिए अनुमति नहीं देती।
- तंत्र के प्रकार:
- खुला तंत्र: द्रव्यमान और ऊर्जा दोनों का आदान-प्रदान हो सकता है।
- बंद तंत्र: केवल ऊर्जा का आदान-प्रदान हो सकता है, द्रव्यमान का नहीं।
- विलगित तंत्र: न तो द्रव्यमान और न ही ऊर्जा का आदान-प्रदान हो सकता है।
- तापीय साम्यावस्था (Thermal Equilibrium): जब दो निकायों के बीच कोई net ऊष्मा प्रवाह नहीं होता, तो वे एक दूसरे के साथ तापीय साम्यावस्था में कहलाते हैं।
- अवस्था चर (State Variables): वे चर जो तंत्र की अवस्था को परिभाषित करते हैं, जैसे दाब (P), आयतन (V), ताप (T) और एन्ट्रॉपी (S)।
- अवस्था का समीकरण (Equation of State): अवस्था चरों के बीच का संबंध। आदर्श गैस के लिए: PV = μRT
- आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy - U): तंत्र में निहित ऊर्जा की कुल मात्रा। यह अवस्था चर है।
ऊष्मागतिकी के शून्यवाँ नियम (Zeroth Law of Thermodynamics)
यदि दो निकाय, एक तीसरे निकाय के साथ अलग-अलग तापीय साम्यावस्था में हों, तो वे आपस में भी तापीय साम्यावस्था में होंगे। इस नियम ने तापमान की अवधारणा और मापन का आधार दिया।
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics)
यह ऊर्जा संरक्षण का नियम है। इसे गणितीय रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जाता है:
ΔU = ΔQ - ΔW
जहाँ:
- ΔU = तंत्र की आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन
- ΔQ = तंत्र को दी गई ऊष्मा
- ΔW = तंत्र द्वारा किया गया कार्य
इस नियम के अनुसार, तंत्र को दी गई ऊष्मा की मात्रा दो कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है:
- तंत्र की आंतरिक ऊर्जा बढ़ाने के लिए।
- तंत्र द्वारा बाह्य कार्य करने के लिए।
विशिष्ट ऊष्मा धारिता (Specific Heat Capacity)
- स्थिर आयतन पर मोलर विशिष्ट ऊष्मा (Cv): स्थिर आयतन पर, 1 मोल पदार्थ का ताप 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा। ΔQ = μ Cv ΔT
- स्थिर दाब पर मोलर विशिष्ट ऊष्मा (Cp): स्थिर दाब पर, 1 मोल पदार्थ का ताप 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा। ΔQ = μ Cp ΔT
- Cp और Cv में संबंध: Cp - Cv = R (जहाँ R सार्वत्रिक गैस नियतांक है)
ऊष्मागतिकीय प्रक्रियाएँ (Thermodynamic Processes)
- रुद्धोष्म प्रक्रिया (Adiabatic Process): वह प्रक्रिया जिसमें तंत्र और परिवेश के बीच ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता (ΔQ = 0)।
- समतापीय प्रक्रिया (Isothermal Process): वह प्रक्रिया जिसमें तंत्र का तापमान नियत रहता है (ΔT = 0)।
- समदाबी प्रक्रिया (Isobaric Process): वह प्रक्रिया जिसमें तंत्र का दाब नियत रहता है (ΔP = 0)।
- समआयतनिक प्रक्रिया (Isochoric Process): वह प्रक्रिया जिसमें तंत्र का आयतन नियत रहता है (ΔV = 0, इसलिए ΔW = 0)।
- चक्रीय प्रक्रिया (Cyclic Process): वह प्रक्रिया जिसमें तंत्र अपनी प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाता है। इस प्रक्रिया में ΔU = 0 होता है।
ऊष्मा इंजन (Heat Engine)
ऊष्मा इंजन एक ऐसा उपकरण है जो ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करता है। इसके मुख्य भाग होते हैं:
- स्रोत (Source): उच्च तापमान T1 का जलाशय, जो ऊष्मा प्रदान करता है (Q1)।
- सिंक (Sink): निम्न तापमान T2 का जलाशय, जो अशुद्ध ऊष्मा ग्रहण करता है (Q2)।
- कार्यशील पदार्थ (Working Substance): वह पदार्थ (जैसे गैस) जो ऊष्मा लेकर कार्य करता है।
दक्षता (Efficiency - η): इंजन द्वारा किए गए उपयोगी कार्य (W) और स्रोत से ली गई कुल ऊष्मा (Q1) का अनुपात।
η = W / Q1 = (Q1 - Q2) / Q1 = 1 - (Q2 / Q1)
ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (Second Law of Thermodynamics)
इस नियम के दो प्रसिद्ध कथन हैं:
- केल्विन-प्लांक का कथन: "किसी भी ऐसे उपकरण की रचना करना असंभव है, जो एक ही जलाशय से ऊष्मा लेकर उसका पूर्ण रूप से उपयोगी कार्य में रूपांतरण कर दे।"
- क्लॉसियस का कथन: "ऐसा कोई भी उपकरण संभव नहीं है जिसकी एकमात्र क्रिया ऊष्मा का निम्न ताप वाले निकाय से उच्च ताप वाले निकाय में स्थानांतरण हो।"
दोनों कथन समतुल्य हैं और यह बताते हैं कि ऊष्मागतिकीय प्रक्रियाएँ एक विशेष दिशा में ही संभव हैं।
प्रतिक्रम्य与 अप्रतिक्रम्य प्रक्रिया (Reversible and Irreversible Processes)
- प्रतिक्रम्य प्रक्रिया: वह प्रक्रम जिसे उलटने पर तंत्र और परिवेश दोनों अपनी मूल अवस्था में वापस आ जाएँ। यह एक आदर्श अवधारणा है।
- अप्रतिक्रम्य प्रक्रिया: वास्तविक जगत की सभी प्रक्रियाएँ अप्रतिक्रम्य होती हैं। इन्हें उलटा नहीं किया जा सकता।
एन्ट्रॉपी (Entropy - S)
एन्ट्रॉपी तंत्र की अव्यवस्था या यादृच्छिकता का माप है। यह एक अवस्था चर है।
- किसी प्रक्रम में एन्ट्रॉपी परिवर्तन: ΔS = ΔQ_rev / T
- ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम को एन्ट्रॉपी के पद में व्यक्त किया जा सकता है: "किसी भी स्वत: होने वाली प्रक्रिया के लिए, ब्रह्मांड (तंत्र + परिवेश) की कुल एन्ट्रॉपी हमेशा बढ़ती है।" ΔS_universe > 0