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UP Board class 12 Political Science Chapter 2. एक दल की प्रधानता का युग Hindi Medium Notes - PDF

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एक दल की प्रधानता का युग (The Era of One-Party Dominance)

यह अध्याय भारत में स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दो दशकों (1952-1967) में कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व वाली राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण करता है। यह 'एक दल की प्रधानता' की अवधारणा को समझाता है, न कि 'एकदलीय व्यवस्था' को।

एक दल की प्रधानता का अर्थ

  • लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी स्थिति जहाँ चुनावी प्रतिस्पर्धा तो होती है, लेकिन कोई एक राजनीतिक दल लगातार चुनाव जीतकर सरकार बनाता है।
  • विपक्ष मौजूद होता है लेकिन सत्ता हासिल करने में असमर्थ रहता है।
  • भारत में यह प्रधानता कांग्रेस पार्टी की थी, जिसने लगातार पहले तीन आम चुनाव (1952, 1957, 1962) में केंद्र और अधिकांश राज्यों में सरकार बनाई।

भारत में कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण

  • स्वतंत्रता संग्राम की विरासत: कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख नेतृत्व करने वाली पार्टी थी, जिसके कारण उसे जनता का व्यापक समर्थन और विश्वास प्राप्त था।
  • नेहरू का चरित्मात्मक नेतृत्व: जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व ने पार्टी को एक मजबूत और लोकप्रिय छवि प्रदान की।
  • सामाजिक समावेशिता: कांग्रेस ने एक 'छतरी संगठन' (Umbrella Organisation) की तरह काम किया जिसमें विभिन्न जातियों, वर्गों, धर्मों और विचारधाराओं के लोग शामिल थे।
  • सकारात्मक कार्यक्रम: पंचवर्षीय योजनाओं, लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास और धर्मनिरपेक्षता जैसे सकारात्मक एजेंडे ने इसे जनाधार दिया।
  • कमजोर और विभाजित विपक्ष: दूसरे दल या तो छोटे थे, या उनका प्रभाव क्षेत्रीय सीमित था, या फिर वे आपस में एकजुट नहीं थे।

प्रमुख विपक्षी दल और उनकी चुनौतियाँ

  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI): विचारधारा आधारित दल, केरल में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने में सफल रही (1957)।
  • भारतीय जन संघ (BJS): हिंदू राष्ट्रवाद और एकात्मक मानववाद की विचारधारा पर आधारित।
  • सोशलिस्ट पार्टी: कांग्रेस के वामपंथी विकल्प के रूप में उभरी, लेकिन टिक नहीं सकी और कई गुटों में बंट गई।
  • स्वतंत्र पार्टी: पूंजीवाद और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाला दल।

भारत के पहले तीन आम चुनाव

  • 1952 का चुनाव: देश का पहला आम चुनाव, कांग्रेस ने 364 सीटें (लोकसभा) जीतीं।
  • 1957 का चुनाव: कांग्रेस ने फिर बहुमत (371 सीटें) हासिल किया।
  • 1962 का चुनाव: कांग्रेस की जीत जारी रही (361 सीटें), लेकिन चीन के साथ युद्ध के बाद नेहरू की छवि को धक्का लगा।

इन चुनावों ने भारत में लोकतंत्र और वयस्क मताधिकार की मजबूत नींव रखी।

कांग्रेस प्रणाली की विशेषताएँ और आलोचनाएँ

  • विशेषताएँ:
    • दल के भीतर ही विचारों और हितों का टकराव और समाधान होता था।
    • लोकतंत्र और विपक्ष के अस्तित्व को बनाए रखा।
    • देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में सहायक।
  • आलोचनाएँ:
    • वास्तविक लोकतंत्र के विकास में बाधक।
    • भ्रष्टाचार और तानाशाही की प्रवृत्ति को बढ़ावा।
    • दल के भीतर गुटबाजी और सत्ता संघर्ष।

1967 के चुनाव: प्रभुत्व का अंत

  • 1967 के चुनाव को एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।
  • कांग्रेस को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा और केंद्र में उसका बहुमत काफी कम हो गया।
  • इसने 'कांग्रेस प्रणाली' के युग के अंत और 'गैर-कांग्रेसवाद' की शुरुआत का संकेत दिया।
  • इसके पीछे मंडल (जाति आधारित राजनीति), मस्जिद (धर्म आधारित राजनीति), और बाजार (आर्थिक मुद्दे) जैसे नए कारक उभरे।

निष्कर्ष

एक दल की प्रधानता का युग भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अनूठा और महत्वपूर्ण दौर था। इसने देश को स्थिरता प्रदान की और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत किया। हालाँकि, 1967 के बाद राजनीतिक भूगोल बदल गया और देश बहु-दलीय प्रणाली की ओर बढ़ने लगा, जो आज भी जारी है।

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