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UP Board class 12 Biology Chapter 16. पर्यावरणीय मुद्दे Hindi Medium Notes - PDF

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अध्याय 16: पर्यावरणीय मुद्दे (Environmental Issues)

16.1 वायु प्रदूषण और इसका नियंत्रण (Air Pollution and Its Control)

  • वायु प्रदूषण: वायुमंडल में हानिकारक पदार्थों (गैसों, कणों, आदि) की मौजूदगी जो मानव स्वास्थ्य, जीव-जंतुओं और पौधों के लिए हानिकारक है।
  • प्रमुख वायु प्रदूषक:
    • सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂)
    • नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx)
    • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)
    • क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs)
    • सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (SPM)
  • प्रभाव: श्वसन समस्याएँ, अम्ल वर्षा, ग्रीनहाउस प्रभाव, ओजोन परत का क्षरण।
  • नियंत्रण:
    • इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रिसिपिटेटर (ESP): ताप विद्युत संयंत्रों से राख के कणों को हटाने के लिए।
    • स्क्रबर: गैसीय प्रदूषकों को हटाने के लिए।
    • उत्प्रेरक कन्वर्टर का वाहनों में उपयोग।
    • CNG (Compressed Natural Gas) जैसे स्वच्छ ईंधन का प्रयोग।

16.2 जल प्रदूषण और इसका नियंत्रण (Water Pollution and Its Control)

  • जल प्रदूषण: जल निकायों (नदी, झील, समुद्र, भूजल) में हानिकारक पदार्थों का मिलना।
  • प्रमुख जल प्रदूषक:
    • घरेलू और नगरपालिका अपशिष्ट
    • औद्योगिक अपशिष्ट (रसायन, भारी धातुएँ)
    • कृषि अपवाह (उर्वरक, कीटनाशक)
    • तेल रिसाव
  • प्रभाव: जलजनित रोग, जलोद्भिदों (Algal Bloom) का फैलना, जलीय जीवों की मृत्यु, जैव आवर्धन (Biomagnification)।
  • नियंत्रण:
    • सीवेज उपचार संयंत्र (STP): अपशिष्ट जल को शुद्ध करने के लिए।
      • प्राथमिक उपचार: भौतिक प्रक्रियाएँ (छानना, अवसादन)।
      • द्वितीयक उपचार: जैविक प्रक्रियाएँ (सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन)।
      • तृतीयक उपचार: रासायनिक/भौतिक विधियों द्वारा पोषक तत्वों को हटाना।
    • औद्योगिक अपशिष्ट उपचार (ETP)।
    • नदी जल की गुणवत्ता की निगरानी (गंगा एक्शन प्लान जैसे कार्यक्रम)।

16.3 ठोस अपशिष्ट (Solid Wastes)

  • ठोस अपशिष्ट: घरेलू, औद्योगिक, कृषि, खान संबंधी और अन्य गतिविधियों से उत्पन्न ठोस कचरा।
  • प्रकार:
    • जैव निम्नीकरणीय (Biodegradable): सब्जियों के छिलके, कागज, खाद्य अपशिष्ट।
    • अजैव निम्नीकरणीय (Non-biodegradable): प्लास्टिक, धातु, काँच, इलेक्ट्रॉनिक कचरा (e-waste)।
  • निपटान के तरीके:
    • लैंडफिल: भूमि में गड्ढे बनाकर कचरे का निपटान।
    • भस्मीकरण (Incineration): उच्च तापमान पर कचरे को जलाना।
    • वर्मीकम्पोस्टिंग: केंचुओं की मदद से जैविक कचरे को खाद में बदलना।
    • पुनर्चक्रण (Recycling): प्लास्टिक, कागज, धातु आदि को पुनः उपयोग के लिए तैयार करना।
  • ई-कचरा (E-waste): इलेक्ट्रॉनिक सामानों का कचरा, जिसमें खतरनाक पदार्थ (सीसा, कैडमियम) होते हैं। इसका उचित निपटान जरूरी है।

16.4 कृषि रसायन और उनके प्रभाव (Agrochemicals and their Effects)

  • उर्वरक (Fertilizers): मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं लेकिन अत्यधिक उपयोग से जल निकायों में पोषक तत्वों की वृद्धि (यूट्रोफिकेशन) होती है।
  • कीटनाशक (Pesticides): फसलों को कीटों से बचाते हैं लेकिन ये जैव आवर्धन (खाद्य श्रृंखला में सांद्रता बढ़ना) का कारण बनते हैं (जैसे DDT)।

16.5 रेडियोधर्मी अपशिष्ट (Radioactive Wastes)

  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, चिकित्सा और शोध से निकलने वाला खतरनाक कचरा।
  • इसके सुरक्षित निपटान (जैसे गहरे भूगर्भीय भंडारण) की आवश्यकता होती है क्योंकि यह विकिरण उत्सर्जित करता है जो जीन उत्परिवर्तन और कैंसर का कारण बन सकता है।

16.6 ग्रीनहाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग (Greenhouse Effect and Global Warming)

  • ग्रीनहाउस प्रभाव: CO₂, CH₄, CFCs, N₂O जैसी गैसें पृथ्वी के वायुमंडल में ऊष्मा को फंसा लेती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन मानवीय गतिविधियों से इन गैसों की सांद्रता बढ़ गई है।
  • ग्लोबल वार्मिंग: ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि।
  • प्रभाव: ध्रुवीय बर्फ पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि, मौसम के पैटर्न में बदलाव, अकाल और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएँ।

16.7 ओजोन परत का क्षरण (Ozone Layer Depletion)

  • ओजोन परत (O₃): समताप मंडल में स्थित परत जो सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है।
  • क्षरण का कारण: क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) जैसे रसायन, जो रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर और एरोसोल में प्रयुक्त होते थे।
  • प्रभाव: त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, मानव प्रतिरक्षा प्रणाली का दमन, फाइटोप्लांकटन को नुकसान।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987): CFCs जैसे ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन पर रोक लगाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि।

16.8 भूमि की गिरावट (Degradation by Improper Resource Utilisation)

  • खनन: भूमि की ऊपरी परत (टॉपसॉयल) का नुकसान, भूमि की गिरावट, और जल प्रदूषण।
  • अतिचारण (Overgrazing): भूमि की उर्वरता में कमी और मरुस्थलीकरण।
  • जल-भराव और लवणता: सिंचाई की अनुचित व्यवस्था से भूमि बंजर हो जाती है।

16.9 वन संरक्षण (Deforestation)

  • कारण: कृषि, शहरीकरण, उद्योग, लकड़ी की कटाई के लिए वनों की कटाई।
  • प्रभाव: जैव विविधता की हानि, मिट्टी का कटाव, बाढ़ और सूखा, वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान।
  • नियंत्रण: वनीकरण, सामाजिक वानिकी, संरक्षित क्षेत्रों (जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य) का निर्माण।

16.10 जनसंख्या वृद्धि का पर्यावरण पर प्रभाव

  • जनसंख्या वृद्धि से संसाधनों की मांग बढ़ती है, जिसके परिणामस्वरूप वनों की कटाई, प्रदूषण और संसाधनों की कमी होती है।

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