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UP Board class 12 Economics Chapter 4. आय निर्धारण Hindi Medium Notes - PDF

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अध्याय 4: आय निर्धारण

यह अध्याय समष्टि अर्थशास्त्र के मुख्य मुद्दे, यानी राष्ट्रीय आय के निर्धारण और संतुलन की व्याख्या करता है। यह बताता है कि अर्थव्यवस्था में संतुलन आय का स्तर कैसे निर्धारित होता है।

मुख्य अवधारणाएँ

  • परिचय: सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति की अवधारणा।
  • उपभोग: उपभोग फलन, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) और औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)।
  • बचत: बचत फलन, सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) और औसत बचत प्रवृत्ति (APS)।
  • निवेश: निवेश की अवधारणा और निवेश के प्रकार।
  • संतुलन आय का निर्धारण: AD-AS और S-I दृष्टिकोण द्वारा संतुलन आय का निर्धारण।
  • गुणक की अवधारणा: निवेश गुणक (K) और इसकी कार्यप्रणाली।
  • अतिरेक माँग और न्यून माँग: मुद्रास्फीतिक और अपस्फीतिक अंतराल की अवधारणा।
  • राजकोषीय नीति: सरकारी हस्तक्षेप की भूमिका (राजस्व और व्यय के माध्यम से)।

1. सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति

  • सामूहिक माँग (AD): यह अर्थव्यवस्था में सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं पर होने वाला कुल नियोजित व्यय है। AD = C + I (दो-क्षेत्रक अर्थव्यवस्था में)।
  • सामूहिक पूर्ति (AS): यह अर्थव्यवस्था में सभी उत्पादकों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति है।
  • संतुलन की स्थिति: जब AD = AS होता है, तो अर्थव्यवस्था संतुलन में होती है और संतुलन आय निर्धारित होती है।

2. उपभोग फलन (Consumption Function)

  • उपभोग (C) और आय (Y) के बीच संबंध को उपभोग फलन कहते हैं।
  • C = C̅ + bY
    • C̅ = स्वायत्त उपभोग (आय शून्य होने पर भी उपभोग)
    • b = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)
    • Y = आय
  • सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC): आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में होने वाला परिवर्तन।
    MPC = ΔC / ΔY (हमेशा 0 और 1 के बीच होती है, 0 < MPC < 1)
  • औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC): कुल उपभोग और कुल आय का अनुपात।
    APC = C / Y

3. बचत फलन (Saving Function)

  • बचत (S) और आय (Y) के बीच संबंध को बचत फलन कहते हैं।
  • चूँकि आय या तो उपभोग की जाती है या बचत की जाती है, इसलिए: Y = C + S
  • इसलिए, S = Y - C
  • S = -C̅ + (1 - b)Y
    • -C̅ = ऋणात्मक स्वायत्त बचत (जब आय शून्य होती है, तब उपभोग के लिए उधार लेना पड़ता है)
    • (1 - b) = सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)
  • सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS): आय में परिवर्तन के कारण बचत में होने वाला परिवर्तन।
    MPS = ΔS / ΔY
  • औसत बचत प्रवृत्ति (APS): कुल बचत और कुल आय का अनुपात।
    APS = S / Y
  • MPC और MPS का योग: MPC + MPS = 1 हमेशा होता है।

4. निवेश (Investment)

  • निवेश: पूँजीगत वस्तुओं (जैसे मशीन, भवन) में नया additions।
  • स्वायत्त निवेश: यह निवेश आय के स्तर पर निर्भर नहीं करता, बल्कि ब्याज दर, तकनीकी progress आदि पर निर्भर करता है। इसे I̅ से दर्शाया जाता है।
  • नियोजित निवेश: निवेशक जितना निवेश करने की योजना बनाते हैं।
  • वास्तविक निवेश: वास्तव में जितना निवेश होता है, जिसमें अनियोजित स्टॉक (inventory) में परिवर्तन भी शामिल होता है।

5. संतुलन आय का निर्धारण

संतुलन आय वह स्तर है जहाँ सामूहिक माँग (AD), सामूहिक पूर्ति (AS) के बराबर होती है।

(क) AD-AS दृष्टिकोण

  • सामूहिक माँग (AD) = C + I
  • सामूहिक पूर्ति (AS) = C + S
  • संतुलन की शर्त: AD = AS
    इसलिए, C + I = C + S
    या, I = S
  • संतुलन आय वहाँ निर्धारित होती है जहाँ निवेश, बचत के बराबर होता है।

(ख) बचत-निवेश (S-I) दृष्टिकोण

  • संतुलन की शर्त: S = I
  • यदि S > I, तो AD < AS → स्टॉक जमा होगा → उत्पादन कम होगा → आय कम होगी।
  • यदि S < I, तो AD > AS → स्टॉक घटेगा → उत्पादन बढ़ेगा → आय बढ़ेगी।
  • संतुलन केवल तभी होगा जब S = I हो।

6. निवेश गुणक (Investment Multiplier)

  • गुणक की अवधारणा की खोज प्रो. कीन्स ने की थी।
  • निवेश गुणक (K) आय में परिवर्तन और निवेश में परिवर्तन का अनुपात है।
  • K = ΔY / ΔI
  • गुणक का मूल्य MPC पर निर्भर करता है: K = 1 / (1 - MPC) = 1 / MPS
  • गुणक की कार्यप्रणाली: प्रारंभिक निवेश में वृद्धि → आय में वृद्धि → उपभोग में वृद्धि → फिर से आय में वृद्धि। यह प्रक्रिया चलती रहती है।
  • जितनी MPC अधिक होगी, गुणक (K) का मान उतना ही अधिक होगा।

7. अतिरेक माँग और न्यून माँग

  • पूर्ण रोजगार स्तर (Full Employment Level): वह स्थिति जब अर्थव्यवस्था के सभी संसाधन पूरी क्षमता से काम कर रहे हों।
  • अतिरेक माँग (Excess Demand): जब पूर्ण रोजगार स्तर पर AD, AS से अधिक होती है। यह मुद्रास्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) पैदा करती है।
  • न्यून माँग (Deficient Demand): जब पूर्ण रोजगार स्तर पर AD, AS से कम होती है। यह अपस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) पैदा करती है।

8. सरकारी हस्तक्षेप: राजकोषीय नीति

  • अतिरेक और न्यून माँग की स्थितियों को सुधारने के लिए सरकार राजकोषीय नीति का उपयोग करती है।
  • अतिरेक माँग (मुद्रास्फीति) को नियंत्रित करने के लिए:
    • सरकारी व्यय कम करना।
    • कर (Taxes) बढ़ाना।
  • न्यून माँग (मंदी) को दूर करने के लिए:
    • सरकारी व्यय बढ़ाना।
    • कर (Taxes) कम करना।

महत्वपूर्ण सूत्र

  • AD = C + I
  • C = C̅ + bY
  • S = -C̅ + (1-b)Y
  • APC + APS = 1
  • MPC + MPS = 1
  • संतुलन की शर्त: AD = AS या S = I
  • गुणक (K) = ΔY / ΔI = 1 / (1 - MPC) = 1 / MPS

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