UP Board class 12 Geography Chapter 9. अंतराष्टीय व्यापार Hindi Medium Notes - PDF
अध्याय 9: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दो या दो से अधिक देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान की प्रक्रिया है। यह किसी देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- प्राचीन काल: व्यापार स्थल और जल मार्गों द्वारा सीमित पैमाने पर होता था। रेशम मार्ग इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
- यूरोपीय अन्वेषणों के बाद (15वीं शताब्दी के बाद): व्यापार का दायरा बढ़ा और महाद्वीपों के बीच दीर्घ दूरी का व्यापार शुरू हुआ। मसाले, सोना, चांदी आदि का व्यापार प्रमुख था।
- उपनिवेशवाद के दौरान: यूरोपीय शक्तियों ने अपने उपनिवेशों को कच्चा माल का स्रोत और तैयार माल का बाजार बना दिया।
- विश्व युद्धों के बाद: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और व्यापारिक बाधाओं को दूर करने के लिए GATT (General Agreement on Tariffs and Trade) और बाद में WTO (World Trade Organization) जैसी संस्थाओं का गठन हुआ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार
- तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत: डेविड रिकार्डो के इस सिद्धांत के अनुसार, एक देश को उस वस्तु का निर्यात करना चाहिए जिसे वह कम अवसर लागत पर बना सकता है और उस वस्तु का आयात करना चाहिए जिसे दूसरा देश कम अवसर लागत पर बना सकता है।
- संसाधनों की उपलब्धता: प्राकृतिक संसाधनों (जैसे तेल, खनिज), पूंजी, श्रम और प्रौद्योगिकी में अंतर व्यापार को जन्म देता है।
- जनसंख्या और मांग में अंतर: अलग-अलग देशों में जनसंख्या के आकार, घनत्व और क्रय शक्ति के आधार पर मांग में भिन्नता होती है।
- परिवहन की सुविधा: सस्ता और कुशल परिवहन व्यापार को बढ़ावा देता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार
- द्विपक्षीय व्यापार: दो देशों के बीच होने वाला व्यापार।
- बहुपक्षीय व्यापार: कई देशों के बीच होने वाला व्यापार।
- निर्यात: दूसरे देशों को वस्तुएं और सेवाएं बेचना।
- आयात: दूसरे देशों से वस्तुएं और सेवाएं खरीदना।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व/लाभ
- विश्व अर्थव्यवस्था में एकीकरण और वैश्वीकरण को बढ़ावा मिलता है।
- देशों को विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
- संसाधनों का कुशल आवंटन और उपयोग होता है।
- उपभोक्ताओं को विविधतापूर्ण और सस्ती वस्तुएं प्राप्त होती हैं।
- रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है।
- प्रौद्योगिकी और ज्ञान का हस्तांतरण होता है।
व्यापार संतुलन
- अनुकूल व्यापार संतुलन: जब किसी देश का निर्यात, उसके आयात से अधिक होता है।
- प्रतिकूल व्यापार संतुलन: जब किसी देश का आयात, उसके निर्यात से अधिक होता है।
- संतुलित व्यापार संतुलन: जब निर्यात और आयात लगभग बराबर होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दिशाएं (Patterns)
- विकसित देशों के बीच व्यापार (जैसे- USA और यूरोप)।
- विकसित और विकासशील देशों के बीच व्यापार (जैसे- USA और भारत)।
- विकासशील देशों के बीच व्यापार।
- पेट्रोलियम निर्यातक देशों (OPEC) और अन्य देशों के बीच तेल का व्यापार।
व्यापारिक ब्लॉक (Trade Blocs)
ये कुछ देशों के ऐसे समूह होते हैं जो आपस में व्यापारिक बाधाओं (जैसे टैरिफ) को कम या खत्म कर देते हैं। उदाहरण:
- EU (European Union)
- ASEAN (Association of Southeast Asian Nations)
- SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation)
- NAFTA (North American Free Trade Agreement), अब USMCA
बंदरगाह: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार
बंदरगाह समुद्री व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। ये प्रमुख प्रकार के होते हैं:
- समुद्री बंदरगाह: खुले समुद्र तट पर स्थित, गहरे पानी के बंदरगाह। (जैसे- मुंबई, कोलकाता)
- अंत:स्थलीय बंदरगाह: समुद्र से जुड़े नदी मार्ग पर स्थित। (जैसे- मानचेस्टर)
- तैल बंदरगाह: विशेष रूप से तेल टैंकरों के लिए बने बंदरगाह।
विश्व व्यापार संगठन (WTO)
यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वैश्विक व्यापार के नियमों को निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य व्यापार को सरल, स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाना है।
भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की मुख्य विशेषताएं
- समय के साथ व्यापार की मात्रा और मूल्य दोनों में भारी वृद्धि हुई है।
- पहले मुख्य निर्यात कच्चा माल (जैसे जूट, कपास) होता था, अब इसमें विनिर्मित वस्तुएं (जैसे इंजीनियरिंग सामान, दवाएं, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं) शामिल हैं।
- पहले मुख्य आयात मशीनरी और तेल था, आज भी तेल और पूंजीगत वस्तुएं प्रमुख आयात हैं।
- भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार: USA, UAE, चीन, सऊदी अरब, हांगकांग आदि।
- वर्तमान में भारत के व्यापार संतुलन पर प्रतिकूल है (आयात > निर्यात)।